जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में नाबालिग बलात्कार पीड़िता को 22 सप्ताह का गर्भ रखने की अनुमति देते हुए उसकी इच्छा को सर्वोच्च माना है। कोर्ट ने पीड़िता की मां द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसकी बेटी का गर्भपात कराने की अनुमति मांगी गई थी।
न्यायाधीश चंद्र प्रकाश श्रीमाली की एकल पीठ में यह याचिका पेश की गई थी। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि पीड़िता नाबालिग है और वह अपने स्वास्थ्य और भविष्य को लेकर कोई परिपक्व निर्णय नहीं ले सकती, इसलिए उसके अभिभावकों की सहमति से गर्भपात की अनुमति दी जाए।
हालांकि कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट और पीड़िता के लिखित और मौखिक बयानों को ध्यान में रखते हुए माना कि वह मानसिक और भावनात्मक रूप से परिपक्व है और खुद निर्णय लेने में सक्षम है। अदालत ने कहा कि पीड़िता की इच्छा के खिलाफ गर्भपात कराना जबरन गर्भपात की श्रेणी में आएगा, जिससे उसे गंभीर मानसिक और शारीरिक क्षति हो सकती है।
कोर्ट ने यह भी माना कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट की धारा 3(4) के अनुसार नाबालिग के मामले में अभिभावकों की सहमति जरूरी होती है, लेकिन जब नाबालिग की इच्छा अभिभावक से अलग हो, तो उसकी इच्छा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि गर्भपात पर निर्णय लेने का अधिकार केवल गर्भवती महिला का होता है, और यह उसका संवैधानिक अधिकार है।
पीड़िता ने स्पष्ट रूप से गर्भपात से इनकार करते हुए कहा कि वह बच्चे को जन्म देना चाहती है और उसका पालन-पोषण स्वयं करेगी। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि पीड़िता के इलाज और भरण-पोषण से जुड़े सभी खर्च राज्य वहन करे। साथ ही, राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिए गए कि पीड़िता को ‘राजस्थान पीड़ित प्रतिकर योजना, 2011’ के तहत उचित मुआवजा भी प्रदान किया जाए।