राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस विधायक और पूर्व शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने सोमवार को राजस्थान विधानसभा की प्राक्कलन समिति ‘ख’ के सदस्य पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देने की घोषणा की। उन्होंने यह जानकारी सोशल मीडिया मंच X (पूर्व में ट्विटर) पर साझा करते हुए विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का गंभीर आरोप लगाया।
डोटासरा ने अपने बयान में कहा कि लोकतंत्र में संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति की निष्पक्षता सर्वोच्च मानी जाती है, लेकिन जब निर्णय उस गरिमा के विपरीत और पक्षपातपूर्ण प्रतीत हों, तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक सिद्ध होता है। ऐसे में चुप रहना जनादेश का अपमान होगा, इसलिए वे प्राक्कलन समिति से त्यागपत्र दे रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि विधानसभा की समितियां केवल सत्ता पक्ष की मोहर नहीं होतीं, बल्कि संतुलन, संवाद और निगरानी का माध्यम होती हैं। डोटासरा ने उदाहरण देते हुए बताया कि कांग्रेस विधायक नरेंद्र बुडानिया को विशेषाधिकार समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था, लेकिन महज 15 दिन में ही उन्हें हटा दिया गया, जो विधानसभा अध्यक्ष की मंशा पर सवाल खड़े करता है। उन्होंने कहा कि आमतौर पर ऐसी समितियों के अध्यक्ष का कार्यकाल न्यूनतम एक वर्ष का होता है।
डोटासरा ने अंता से भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा के मामले का भी जिक्र किया, जिनकी तीन साल की सजा हाईकोर्ट द्वारा बरकरार रखी गई है। उन्होंने कहा कि दो साल से अधिक की सजा होने पर जनप्रतिनिधि स्वतः अयोग्य माने जाते हैं, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष द्वारा अब तक उनकी सदस्यता रद्द नहीं की गई, जो संविधान और न्याय व्यवस्था की अवहेलना है।
डोटासरा ने कहा कि यह कोई पहली घटना नहीं है, ऐसे कई निर्णय यह दर्शाते हैं कि विधानसभा अध्यक्ष दबाव में कार्य कर रहे हैं और उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं। उन्होंने अध्यक्ष वासुदेव देवनानी से अपेक्षा जताई कि वे संविधान की शपथ का पालन करते हुए निष्पक्ष और विधिसम्मत निर्णय लें, जिससे जनता का लोकतंत्र और सदन की गरिमा बरकरार रहे।