जयपुर। गंगाजल से मंदिर शुद्धिकरण को लेकर शुरू हुए विवाद में निलंबित भाजपा नेता ज्ञानदेव आहूजा ने पार्टी द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस का जवाब भेज दिया है। आहूजा ने अपने जवाब में माफी मांगने से साफ इनकार करते हुए कहा कि उन्होंने कोई गलती नहीं की, इसलिए माफी का सवाल ही नहीं उठता। उनका कहना है कि माफी मांगने की संस्कृति मेरी नहीं रही है और मैं आगे भी माफ़ी नहीं मांगूंगा।
इस पूरे घटनाक्रम ने भाजपा के लिए राजनीतिक असहजता की स्थिति खड़ी कर दी है, जबकि कांग्रेस ने पहले ही इस मुद्दे को दलित अपमान से जोड़ते हुए राष्ट्रीय स्तर पर उठाया और इसे राजनीतिक हमला और जातिगत असमानता का उदाहरण बताया।
क्या कहा ज्ञानदेव आहूजा ने? :भाजपा की प्रदेश इकाई को भेजे गए अपने जवाब में ज्ञानदेव आहूजा ने लिखा कि उनका विरोध केवल कांग्रेस नेता टीकाराम जूली के मंदिर आने से था, न कि दलित समुदाय से। उन्होंने खुद को दलितों का हितैषी बताते हुए कहा कि वे तीन बार अलवर से विधायक रह चुके हैं और हमेशा दलित समाज के पक्ष में खड़े रहे हैं।
उन्होंने स्पष्ट किया कि मैंने न कभी दलितों का अपमान किया और न ही सोच सकता हूं। मेरे विरोध का कारण टीकाराम जूली का कांग्रेस से जुड़ा होना था, न कि उनका जातीय परिचय।"
राजनीतिक प्रभाव और दलित विमर्श: इस बयान के बाद जहां भाजपा नेतृत्व के लिए स्थिति और जटिल हो सकती है, वहीं कांग्रेस पहले ही इस प्रकरण को दलित सम्मान से जोड़कर राजनीतिक दबाव बना रही है। कांग्रेस इसे देशभर में दलित समाज के साथ अपमानजनक व्यवहार की एक मिसाल के तौर पर प्रचारित कर रही है।
राजनीतिक प्रतीक बन गया गंगाजल विवाद: भाजपा के निलंबित पूर्व विधायकज्ञानदेव आहूजा ने अपने बयान में जोर दिया कि मंदिर में गंगाजल से शुद्धिकरण केवल राजनीतिक विरोध का प्रतीक था और इसका जातीय या धार्मिक पूर्वाग्रह से कोई लेना-देना नहीं था।