भाजपा में इन दिनों एक बड़ा सवाल राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है—पार्टी का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन होगा और उसकी घोषणा कब होगी? इस सवाल का उत्तर देने में वरिष्ठ नेता अभी भी "उचित समय" की बात कहकर टालते नजर आ रहे हैं। जेपी नड्डा का कार्यकाल जून 2024 में समाप्त हो चुका है और वे फिलहाल एक्सटेंशन पर हैं। अब पार्टी के अंदरूनी स्तर पर नए अध्यक्ष के चयन को लेकर आम-सहमति बनाने की कोशिशें तेज़ हैं। जैसे ही आम-सहमति बनेगी, नए अध्यक्ष के चुनाव की औपचारिक घोषणा कर दी जाएगी।
वर्तमान में भाजपा का राष्ट्रीय सदस्यता अभियान पूरा हो चुका है। संगठनात्मक दृष्टि से 10 प्रदेशों में चुनाव संपन्न हो चुके हैं जबकि 26 राज्यों में अभी चुनाव होना बाकी है। हालांकि परंपरा के अनुसार 18 राज्यों में संगठनात्मक चुनाव पूरे होने के बाद ही राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाते हैं, लेकिन यह कोई बाध्यता नहीं है। भाजपा के संविधान की धारा 19 के तहत यदि पांच राज्यों में राष्ट्रीय परिषद का चुनाव हो चुका हो, तो 20 सदस्य मिलकर संयुक्त रूप से किसी एक नाम को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित कर सकते हैं।
इस बीच पार्टी के भीतर और बाहर आठ ऐसे नाम चर्चा में हैं जो इस पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं।
शिवराज सिंह चौहान: छह बार लोकसभा सांसद और चार बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके शिवराज सिंह को संघ और संगठन, दोनों का व्यापक समर्थन प्राप्त है। लाडली बहना योजना जैसे जनकल्याणकारी कार्यों से उनकी छवि मजबूत हुई है। वे ओबीसी समुदाय से आते हैं और पार्टी के लिए एक अनुभवी, संतुलित और जनाधार वाले नेता हैं।
सुनील बंसल:भाजपा संगठन में बेहद प्रभावशाली माने जाने वाले बंसल, उत्तर प्रदेश में पार्टी को नई ऊंचाइयों तक ले जाने वाले रणनीतिकार रहे हैं। वे ओडिशा, बंगाल और तेलंगाना जैसे राज्यों में भी संगठन का विस्तार कर चुके हैं। संघ से गहरे जुड़ाव और संगठनात्मक अनुभव के चलते वे मजबूत विकल्प माने जा रहे हैं।
धर्मेन्द्र प्रधान:ओडिशा से आने वाले केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान पार्टी के अनुभवी रणनीतिकारों में से एक हैं। ओबीसी नेता होने के साथ वे संगठन में मजबूत पकड़ रखते हैं और मोदी-शाह टीम के भरोसेमंद सदस्य माने जाते हैं। दो बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा सांसद रहे हैं।
रघुवर दास:झारखंड के पहले गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल का स्थिर शासन देने वाले रघुवर दास संगठन और कार्यकर्ताओं के बीच मजबूत पकड़ रखते हैं। ओबीसी समुदाय से होने के कारण वे सामाजिक संतुलन में भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकते हैं।स्मृति ईरानी:पूर्व में मानव संसाधन, महिला एवं बाल विकास, कपड़ा जैसे मंत्रालयों का नेतृत्व कर चुकीं स्मृति ईरानी भाजपा की मजबूत महिला नेता हैं। पार्टी और संघ दोनों से अच्छे संबंध और राष्ट्रीय स्तर पर पहचान उन्हें इस दौड़ में आगे रखती है।
वानति श्रीनिवासन:भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष और कोयंबटूर से विधायक, वानति श्रीनिवासन दक्षिण भारत में भाजपा के विस्तार की अहम कड़ी बनकर उभरी हैं। 1993 से पार्टी से जुड़ी हुई हैं और संगठनात्मक कार्यों में अनुभव रखती हैं।
तमिलिसाई सौंदर्यराजन:पूर्व तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष और वर्तमान में तेलंगाना की राज्यपाल, तमिलिसाई संगठन और दक्षिण भारत की राजनीति में अच्छी पकड़ रखती हैं। वे पीएम मोदी और अमित शाह की नजदीकी नेताओं में मानी जाती हैं।
डी. पुरंदेश्वरी:आंध्र प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और एन.टी. रामाराव की पुत्री डी. पुरंदेश्वरी कांग्रेस में मंत्री रही हैं, पर अब भाजपा में सक्रिय हैं। उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने से आंध्र और तेलंगाना में पार्टी को मजबूती मिल सकती है।
इन नामों पर मंथन जारी है और जैसे ही संगठनात्मक चुनावों की प्रक्रिया कुछ और राज्यों में पूरी हो जाएगी, पार्टी आम सहमति से नए अध्यक्ष के नाम की घोषणा कर सकती है। चुनाव न सिर्फ 2029 की तैयारियों की नींव रखेगा बल्कि यह भी संदेश देगा कि भाजपा सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व देने के लिए प्रतिबद्ध है।
भाजपा के रणनीतिकारों के अनुसार जो भी नेता नया अध्यक्ष बनेगा, 2029 के लोकसभा चुनाव उसी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। इसलिए नेतृत्व परिवर्तन ऐसा होना चाहिए जिससे संगठन के भीतर सभी वर्गों को संतुष्टि मिले और यह संदेश न जाए कि निर्णय थोपे जा रहे हैं। विपक्ष लगातार यह नैरेटिव गढ़ने का प्रयास कर रहा है कि भाजपा में एकपक्षीय फैसले होते हैं।
इसके साथ ही भाजपा महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी बड़ा कदम उठाने की योजना बना रही है। पार्टी सूत्रों के अनुसार नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद में महिलाओं को 33 प्रतिशत तक प्रतिनिधित्व देने की योजना है। संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ाई जाएगी।