कोलकाता के सोनागाची इलाके में इस बार होली का उत्सव एक अनूठे और जीवंत अंदाज में मनाया गया। इस रेड लाइट एरिया की संकरी गलियों में इस बार सिर्फ रंग नहीं, बल्कि उम्मीद, अपनापन और खुशियों की फुहारें भी देखने को मिलीं।
भारत के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया सोनागाची में सेक्स वर्कर्स ने इस साल होली को अपनी एकता और खुशी के प्रतीक के रूप में अपनाया। चारों ओर गुलाल और अबीर के बादल छाए हुए थे। पारंपरिक ढोल-नगाड़ों की धुन पर नाचती महिलाएँ, चेहरे पर रंग और मुस्कान लिए इस त्योहार को किसी आम उत्सव से अलग एक नया अर्थ दे रही थीं।
यह त्योहार उन महिलाओं के लिए खुशियों और सामाजिक समरसता का प्रतीक है, जो अक्सर समाज से कटकर अपनी एक अलग दुनिया में जीती हैं। लेकिन होली की मस्ती में कोई भेदभाव नहीं था—हर कोई एक-दूसरे को रंग लगाकर हँसी-ठिठोली करता दिखा।
एक सेक्स वर्कर ने कहा, "होली हमारे लिए सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं, बल्कि समाज में हमें अपनाए जाने की उम्मीद का रंग भी है।"
इस उत्सव में कई सामाजिक संगठनों और गैर-सरकारी संस्थाओं (NGOs) ने भी हिस्सा लिया, जिन्होंने यहाँ के लोगों को स्वास्थ्य, शिक्षा और आत्मनिर्भरता को लेकर जागरूक किया। साथ ही, LGBTQ+ समुदाय और ट्रांसजेंडर सेक्स वर्कर्स ने भी बढ़-चढ़कर इस उत्सव में भाग लिया, जिससे यह कार्यक्रम और भी समावेशी बन गया।
त्योहार के दौरान फागुन के लोकगीत, बॉलीवुड के होली गीत और ढोल की थाप पूरे इलाके में गूँज रही थी। सभी ने एक-दूसरे को रंगों में सराबोर कर मानवीय रिश्तों को मजबूत करने का संदेश दिया।
यह नज़ारा केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि उनकी खुशी और संघर्ष की कहानी का एक हिस्सा था। रंगों के इस मेले में, वे कुछ पलों के लिए अपने संघर्षों को भूलकर सिर्फ खुशी और अपनापन महसूस कर रही थीं।