Sunday, 23 February 2025

प्रयागराज महाकुंभ 2025: आस्था, संघर्ष और दिव्यता की अद्भुत यात्रा


प्रयागराज महाकुंभ 2025: आस्था, संघर्ष और दिव्यता की अद्भुत यात्रा

प्रयागराज: 144 वर्षों बाद आयोजित महाकुंभ 2025 में शामिल होने की लंबे समय से चली आ रही इच्छा आखिरकार पूरी हुई। यह यात्रा न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी थी, बल्कि संघर्ष, दृढ़ निश्चय और परमात्मा की कृपा का साक्षात्कार भी कराई। इस महायात्रा में गैंगटोक (सिक्किम) से प्रयागराज तक का सफर, यात्रा में आई कठिनाइयाँ, परमात्मा की सहायता से निकला मार्ग, और अंततः त्रिवेणी संगम में मोक्षदायी स्नान का अनुभव अविस्मरणीय रहा।

यात्रा की शुरुआत: ट्रेन टिकट की अनिश्चितता और ईश्वरीय कृपा

गैंगटोक में सिक्किम प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में कुलसचिव के पद पर कार्यरत होने के कारण यात्रा की योजना पहले से बनाई थी। हरीद्वार, नासिक और उज्जैन में महाकुंभ स्नान के बाद, प्रयागराज कुंभ में डुबकी लगाने की अगाध इच्छा थी। लेकिन जब 23 जनवरी 2025 के लिए एनजेपी (न्यू जलपाईगुड़ी) से जयपुर की ट्रेन का टिकट वेटिंग में ही रह गया, तो यह धक्का लगा।

इस अनिश्चितता के बीच, परमात्मा का मार्गदर्शन मिला। गैंगटोक में व्यापार कर रहे सीकर निवासी कैलाश शर्मा और सुभाष शर्मा ने सुझाव दिया कि तत्काल टिकट का प्रयास किया जाए। रेलवे टिकट खिड़की पर तत्काल बुकिंग की गई, लेकिन निराशा हाथ लगी जब अधिकारी ने बताया कि टिकट कन्फर्म नहीं हुआ।

इस कठिन समय में आस्था और धैर्य ने मार्ग दिखाया। रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी से संपर्क किया गया, जिन्होंने राजधानी एक्सप्रेस के वीवीआईपी कोटे से सेकंड एसी में टिकट दिलवा दिया। हालांकि, किराया दोगुना था, लेकिन प्रयागराज महाकुंभ की पवित्र डुबकी की इच्छा इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण थी।

चोमू से प्रयागराज की ओर: भक्ति और समर्पण की यात्रा

दिल्ली से चोमू पहुँचने के बाद, चोमू निवासी भुवनेश तिवारी जी से संपर्क किया, जिन्होंने बताया कि पंडित महेश शास्त्री जी की 11 बसों का जत्था कुंभ के लिए रवाना हो रहा है। उनके साथ यात्रा की व्यवस्था पक्की कर ली गई।इस दौरान, परिवार में बीमारी और परीक्षाओं जैसी अड़चनें आईं, लेकिन परमात्मा की कृपा से सब व्यवस्थित हो गया।27 जनवरी को भजन-कीर्तन और भक्ति के माहौल में प्रयागराज के लिए रवाना हुए। सड़कों पर लंबा जाम और कुंभ की भीड़ के कारण 20 किलोमीटर का सफर पैदल तय करना पड़ा।पत्नी सविता देवी रावत की तबीयत खराब थी, लेकिन कुंभ क्षेत्र में प्रवेश करते ही उनका स्वास्थ्य स्वतः ठीक हो गया।

संगम स्नान: आत्मिक शांति और दिव्य अनुभूति

त्रिवेणी संगम तक पहुँचने के लिए छह घंटे पैदल चलना पड़ा, लेकिन यह आस्था और विश्वास की परीक्षा थी।घाट पर पहुँचकर रात्रि 9:30 बजे मोक्षदायी स्नान किया। गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम में परिवार सहित डुबकी लगाकर ईश्वर का धन्यवाद दिया।

कुंभ में भगदड़: बाल-बाल बचा परिवार

महाकुंभ में रात दो बजे भगदड़ मचने की खबर मिली, जिसमें 30 से 40 लोगों की मृत्यु हो गई। यह सुनकर दिल दहल गया, लेकिन साथ ही परमात्मा का आभार भी व्यक्त किया कि उन्होंने हमें सुरक्षित स्नान करवा दिया।

 वापसी में रास्ता भटकने का अनुभव

वापसी के दौरान रास्ता भटक गए, लेकिन लेटे हनुमान जी के दर्शन करने और एक आर्मी अधिकारी की सहायता से सही रास्ता मिल गया।धूल, धूप और थकान के बावजूद 15 किलोमीटर का सफर पैदल तय कर वापस पार्किंग तक पहुँचे।

महाकुंभ का अनुभव: आध्यात्मिक ऊर्जा और पुण्य लाभ

महाकुंभ में आने का सौभाग्य 144 वर्षों बाद मिला।यह अनुभव केवल एक यात्रा नहीं थी, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और परमात्मा के प्रति अनन्य विश्वास का प्रतीक थी। इस पूरे आयोजन की सफलता के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, पुलिस प्रशासन, आर्मी, प्रशासनिक अधिकारियों, संतों और स्वयंसेवकों को सादर नमन। यह यात्रा न केवल आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक थी, बल्कि इसमें धैर्य, संघर्ष, आस्था और परमात्मा की अनुकंपा का अनुभव भी शामिल था।

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