हाइलाइट्स:
भारत शांति चाहता है लेकिन दुस्साहस को बर्दाश्त नहीं करेगा: भागवत
शक्ति के बिना दुनिया प्रेम की भाषा नहीं समझती
भारत सहयोग करता है, चाहे सामने वाला देश विपरीत धारा का ही क्यों न हो
संत समाज ऋषि परंपरा का निर्वहन कर रहा है, बच्चों को उनके पास ले जाएं
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शनिवार को जयपुर के सीकर रोड स्थित रविनाथ आश्रम में आयोजित संत रविनाथ महाराज की पुण्यतिथि कार्यक्रम में संबोधित करते हुए भारत की भूमिका, विश्व में शांति स्थापना, और शक्ति के महत्व पर विचार रखे। उन्होंने स्पष्ट कहा कि भारत किसी से शत्रुता नहीं करता, लेकिन अगर कोई दुस्साहस करता है, तो उसे सबक सिखाने से पीछे भी नहीं हटता।
डॉ. भागवत ने कहा कि दुनिया प्रेम और मंगल की भाषा तब ही सुनती है जब आपके पास शक्ति हो। यह दुनिया का स्वभाव है जिसे बदला नहीं जा सकता। इसलिए विश्व कल्याण के लिए भारत को शक्ति संपन्न होना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि भारत एक प्राचीन राष्ट्र है जो शांति, सहयोग और सौहार्द के मार्ग पर चलता है, और कई बार ऐसे देशों की भी मदद करता है जो विपरीत विचारधारा के होते हैं।
उन्होंने आश्रम में अपने संबोधन की शुरुआत ‘भारत का रहने वाला हूं, भारत की बात सुनाता हूं’ से की और बताया कि वे रविदास जी के भक्त हैं, इसलिए आश्रम आए हैं। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया में बड़े भाई की भूमिका निभा रहा है, लेकिन उसे घमंड नहीं करना चाहिए। बलिदान और त्याग की परंपरा भारत की पहचान है, जिसे भगवान श्रीराम और भामाशाह जैसे चरित्रों से समझा जा सकता है।
संघ प्रमुख ने ऑपरेशन सिंदूर का परोक्ष रूप से उल्लेख करते हुए कहा कि दुर्बल कुछ नहीं कर सकता, दुनिया को शक्ति दिखानी पड़ती है। भारत हर देश से उसके स्वभाव और हित के अनुसार व्यवहार करता है, फिर भी सहयोग की भावना बनाए रखता है। उन्होंने संत समाज की सराहना करते हुए कहा कि वे ऋषि परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं और समाज को सही दिशा दे रहे हैं।
भागवत ने बच्चों को संतों के सान्निध्य में लाने की अपील की और कहा कि साधु-संत 'फुल चार्ज' होते हैं, और हम उनसे 'रिचार्ज' होकर जाते हैं। उन्होंने सभी को संतों से जुड़ने और उनके मूल्यों को जीवन में उतारने की सलाह दी।