ईसाई समुदाय के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का सोमवार को 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे पिछले कई दिनों से गंभीर रूप से बीमार थे और अस्पताल में भर्ती थे। उन्हें डबल निमोनिया और किडनी फेल की समस्या थी, जिसके चलते उन्हें लगातार ऑक्सीजन सपोर्ट और ब्लड ट्रांसफ्यूजन की आवश्यकता पड़ रही थी। उनके निधन के साथ ही कैथोलिक चर्च में नेतृत्व परिवर्तन की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है।
पोप फ्रांसिस का असली नाम जॉर्ज मारियो बर्गोलियो था। उनका जन्म 17 दिसंबर 1936 को अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में हुआ। उन्होंने हाई स्कूल से केमिकल टेक्नीशियन की डिग्री प्राप्त की थी और 1958 में जेसुइट संप्रदाय में प्रवेश लिया। बाद में वे लिटरेचर और मनोविज्ञान के शिक्षक भी रहे।
13 दिसंबर 1969 को वे पादरी बने और 1973 में अर्जेंटीना में जेसुइट प्रांत के प्रमुख नियुक्त हुए। 1992 में पोप जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें ब्यूनस आयर्स का सहायक बिशप नियुक्त किया। 1998 में वे आर्चबिशप बने और 2001 में कार्डिनल की उपाधि प्राप्त की।
13 मार्च 2013 को पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के इस्तीफे के बाद 76 वर्ष की आयु में वे पोप चुने गए और "फ्रांसिस" नाम अपनाया। वे पहले अर्जेंटीना मूल के पोप थे और चर्च के भीतर सुधारवादी दृष्टिकोण और सामाजिक न्याय पर केंद्रित विचारों के लिए जाने जाते थे।
पोप फ्रांसिस के निधन के बाद, वेटिकन की परंपरा के अनुसार, सेक्रेटरी ऑफ स्टेट कार्डिनल पिएत्रो पारोलिन नए पोप के चुने जाने तक कैथोलिक चर्च के दैनिक कार्यों का प्रबंधन करेंगे। नए पोप का चुनाव कॉन्क्लेव नामक प्रक्रिया के तहत वेटिकन सिटी में मौजूद कार्डिनलों की सभा के माध्यम से होगा।