जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) 2025 में प्रसिद्ध लेखिका और समाजसेवी सुधा मूर्ति ने अपनी नवीनतम पुस्तक ‘कोकोनट एंड बर्फी’ पर चर्चा की। इस दौरान उन्होंने परिवार, बचपन, जिज्ञासा और खुश रहने के छोटे-छोटे तरीकों पर अपने विचार व्यक्त किए।
सुधा मूर्ति ने कहा कि आज के दादा-दादी और नाना-नानी टीवी सीरियल्स और बनावटी परिवारों की कहानियों में व्यस्त रहते हैं, जबकि असली पारिवारिक मूल्यों पर ध्यान देना सबसे जरूरी है।"बचपन और जिज्ञासा पर सुधा मूर्ति की बातें "जब आपके मन में कुछ अलग करने की इच्छा और जिज्ञासा हो, तो वही बचपना है।" उन्होंने कहा कि मैं कभी 70 साल की सुधा मूर्ति नहीं बन सकती, जब तक मैंने 8 साल के बचपने को नहीं जाना।""सीखने की कोई उम्र नहीं होती। कोई भी किसी भी समय नया सीख सकता है।"
उन्होंने कहा कि बच्चे केवल पढ़ाई से नहीं, बल्कि अपने आसपास की दुनिया से भी बहुत कुछ सीखते हैं। अगर हम बचपन की जिज्ञासा को बनाए रखें, तो उम्र बढ़ने के बावजूद हम नई चीजें सीख सकते हैं।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत की विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर हमें अपनी पहचान पर गर्व करने का अवसर देती है।