सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर बुधवार को अहम फैसला सुनाते हुए अफसरों के लिए 15 गाइडलाइंस जारी कीं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अफसर खुद को जज न समझें और यह न तय करें कि कौन दोषी है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने यह भी कहा कि अगर 15 दिन का नोटिस दिए बिना किसी निर्माण को तोड़ा गया, तो अफसर को अपने खर्च पर निर्माण को दोबारा बनाना पड़ेगा। कोर्ट ने फैसला पढ़ते हुए कवि प्रदीप की पंक्तियाँ उद्धृत कीं – "अपना घर हो, अपना आंगन हो, इस ख्वाब में हर कोई जीता है।"
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के पीछे मध्य प्रदेश, राजस्थान, और उत्तर प्रदेश में बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ दायर याचिकाएं थीं, जिनमें निर्माण गिराने को लेकर गाइडलाइंस की मांग की गई थी। कोर्ट की गाइडलाइंस के अनुसार, नोटिस के बिना कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी और नोटिस के बाद 15 दिन का समय दिया जाएगा।
मुख्य गाइडलाइंस:
बुलडोजर कार्रवाई के आदेश के खिलाफ अपील का अवसर दिया जाए।
घर गिराने की कार्रवाई रातोंरात न की जाए, जिससे महिलाओं और बच्चों को सड़कों पर न आना पड़े।
गाइडलाइंस अवैध अतिक्रमण, जैसे सड़कों या नदी किनारे पर किए गए निर्माण पर लागू नहीं होंगी।
बिना शो कॉज नोटिस के कोई निर्माण नहीं गिराया जाएगा।
नोटिस रजिस्टर्ड पोस्ट से भेजा जाए और निर्माण की दीवार पर चिपकाया जाए।
नोटिस के बाद 15 दिन का समय दिया जाए।
कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट को भी सूचना दी जाए।
डीएम और कलेक्टर कार्रवाई पर नजर रखने के लिए नोडल अफसर नियुक्त करें।
नोटिस में कार्रवाई का कारण, सुनवाई की तारीख और स्थान स्पष्ट रूप से बताया जाए।
अधिकारियों द्वारा पर्सनल हियरिंग और इसकी रिकॉर्डिंग की जाए।
फाइनल ऑर्डर को डिजिटल पोर्टल पर प्रकाशित किया जाए।
अवैध निर्माण गिराने के आदेश के बाद व्यक्ति को 15 दिन का समय दिया जाए।
कार्रवाई की वीडियोग्राफी कर उसे सुरक्षित रखा जाए।
गाइडलाइंस का पालन न करने पर कोर्ट अवमानना मानी जाएगी और अधिकारी को मुआवजा भी देना होगा।
निर्देश सभी मुख्य सचिवों को भेजे जाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि इन गाइडलाइंस का उल्लंघन किया गया, तो संबंधित अधिकारी को कोर्ट की अवमानना का सामना करना पड़ेगा।