Thursday, 19 September 2024

भाजपा नेताओं ने बंद कमरे में की हार की समीक्षा, आंतरिक कलह और गुटबाजी तथा कमजोर चुनावी प्रबंधन के कारण पार्टी चुनाव हारी,नहीं आए डॉ.करोड़ी लाल मीणा


भाजपा नेताओं ने बंद कमरे में की हार की समीक्षा, आंतरिक कलह और गुटबाजी तथा कमजोर चुनावी प्रबंधन के कारण पार्टी चुनाव हारी,नहीं आए डॉ.करोड़ी लाल मीणा

भाजपा प्रदेश कार्यालय में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, चुनाव प्रभारी विनय सहस्रबुद्धे, प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी, सह प्रभारी विजया राहटकर ने शनिवार को सात लोकसभा क्षेत्र टोंक-सवाईमाधोपुर, झुंझुनूं, बाड़मेर, चूरू, नागौर, सीकर और दोसा पर नेताओं से शनिवार को चर्चा की गई और रविवार को भरतपुर, करौली-धौलपुर, श्रीगंगानगर, बांसवाड़ा-डूंगरपुर के नेताओं से चर्चा हुई।

हार की समीक्षा बैठक में संभाग प्रभारी, सह संभाग प्रभारी, जिला अध्यक्ष, जिला प्रभारी, लोकसभा प्रभारी, लोकसभा संयोजक, प्रत्याशी, पूर्व सांसद और विधायक और विधायक प्रत्याशी से फीडबैक लिया गया। बैठक में यह बात खुलकर सामने आई की चुनाव में आंतरिक कलह और गुटबाजी तथा कमजोर चुनावी प्रबंधन के कारण पार्टी चुनाव हार गई। वरिष्ठ नेताओं के सामने हारे हुए उम्मीदवारों और फील्ड पर काम कर रहे नेताओं ने एक-एक करके हार के कारण गिनाए हैं।

कई उम्मीदवारों ने प्रदेश प्रभारी, प्रदेशाध्यक्ष और वरिष्ठ नेताओं के सामने अपना दर्द जाहिर करते हुए कहा कि बहुत सी जगहों पर अपनों ने ही हरवाया । पार्टी को ऐसे नेताओं के बारे में चुनाव के वक्त ही बता दिया था, लेकिन इसके बाद भी सुधार नहीं हुआ। नेताओं ने अंदरखाने साथ रहने का नाटक किया, उनके समर्थकों ने पार्टी को हरवाने में दिन-रात एक कर दिया।

हार के कारणों की समीक्षा में सभी सीटों पर तीन से चार बातें कॉमन रहीं। ज्यादातर नेताओं ने यह माना है कि हवा का रुख भांपकर रणनीति बदलने में फेल साबित हुए। कई सीटों पर तो शुरू में लग ही नहीं रहा था कि इस तरह का अंडर करंट है। लेकिन जब प्रचार गति पकड़ने लगा तो इसका अहसास हुआ। तब तक देर हो चुकी थी।

नेताओं और उम्मीदवारों ने कहा कि कांग्रेस ने जिस तरह एससी-एसटी आरक्षण खत्म होने का प्रचार किया। उसका समय पर जवाब नहीं दे सके। जब तक उसे काउंटर करना शुरू किया, तब तक देर हो चुकी थी। कांग्रेस के इस नरेटिव से एससी-एसटी वोटर में बहुत नुकसान हुआ। इसे काउंटर करने की कोशिश वोट में नहीं बदली। 

स्थानीय नेताओं ने तर्क दिया कि ओवर ​कॉन्फिडेंस भी हार का बड़ा कारण रहा। ग्राउंड पर बड़े-बड़े नेता नहीं भांप सके। चुनाव लड़ने वालों से लेकर ग्राउंड पर रणनीति बनाने वाले ओवर कॉन्फिडेंस में रहे, यह हार की बड़ी वजह रही।

दौसा सीट पर हार की समीक्षा की बैठक में कृषि मंत्री डॉ. किरोड़ी लाल मीना को भी बुलाया गया था, लेकिन वे अपने संसदीय क्षेत्र टोंक-सवाईमाधोपुर की बैठक और दौसा की बैठक में मौजूद नहीं रहे।

सीकर लोकसभा सीट पर हार के कारणों को लेकर आए फीडबैक में पूर्व सासंद और हारे हुए उम्मीदवार सुमेधानंद सरस्वती ने कई स्थानीय नेताओं की भूमिका पर सवाल उठाए।

उन्होंने यहां तक कहां की​ जिन नेताओं को बड़े पद बांट दिए, वे भी वोट दिलवाने में नाकाम रहे। कोई तो बात है कि वोट नहीं मिले। लाल बत्ती वाले नेता समय पर फील्ड में निकलते और मन लगाकर काम करते तो हालात दूसरे होते।

ज्यादातर नेताओं ने जातीय नाराजगी को हार का बड़ा कारण बताया। चूरू, सीकर, झुंझुनूं, नागौर, बाड़मेर के नेताओं ने माना कि एससी एसटी के अलावा अब तक साथ रही जातियां भी इस बार नाराज थीं। पिछले चुनावों में जिन राजपूत,जाट और गुर्जर जातियों का वोट भाजपा को मिला। इस बार वे नाराज थीं। जातीय समीकरण साध नहीं पाए, यह नाराजगी धीरे धीरे बढ़ती ही रही।

पूर्वी राजस्थान की दौसा और टोंक-सवाईमाधोपुर सीट के नेताओं ने फीडबैक बैठक में तर्क दिया कि खुद की कमजोरियां भी हार की बड़ी वजह रही हैं। एससी-एसटी के मतदाताओं ने कांग्रेस की ही क्यों सुनी, इस पर विचार करना होगा। इसका मतलब है कि काम नहीं हुआ। ग्राउंड पर जाकर लोगों के बीच काम करने में और कागजों में प्लानिंग करने में फर्क होता है। जो यहां साफ दिखा है।


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