Saturday, 29 March 2025

संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव घोटाला: हाईकोर्ट ने जांच एजेंसियों की कार्यशैली पर उठाए सवाल, स्पष्ट रिपोर्ट पेश करने का अंतिम मौका


संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव घोटाला: हाईकोर्ट ने जांच एजेंसियों की कार्यशैली पर उठाए सवाल, स्पष्ट रिपोर्ट पेश करने का अंतिम मौका

हाईकोर्ट ने चर्चित संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी घोटाले में जांच एजेंसियों की कार्यशैली पर कड़ी नाराजगी जताई है। न्यायमूर्ति फरजंद अली की एकल पीठ ने सरकार को अंतिम अवसर देते हुए निर्देश दिए हैं कि वह स्पष्ट करे कि कितने मामलों में 'अनियमित जमा योजना प्रतिबंध अधिनियम, 2019' (BUDS Act) के तहत कार्रवाई होगी और कितने मामलों में केवल भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत मुकदमा चलाया जाएगा।

कोर्ट की नाराजगी के मुख्य बिंदु:कोर्ट ने टिप्पणी की कि 6 वर्ष बाद भी जांच एजेंसियों और अभियोजन पक्ष को यह स्पष्ट नहीं है कि BUDS Act लागू होता है या नहीं, यह स्थिति "बेहद दुर्भाग्यपूर्ण" है। पीठ ने कहा कि यह दर्शाता है कि अधिकारियों ने व्यक्तियों की स्वतंत्रता के साथ मनमानी की है।सरकार को स्पष्ट रिपोर्ट पेश करने के लिए एक अंतिम अवसर दिया गया है।

देवी सिंह समेत अन्य आरोपियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता धीरेंद्र सिंह दासपा और अन्य ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें दलील दी गई कि एक ही मामले में दो अलग-अलग कानून (BUDS Act और IPC) के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती।

कोर्ट की टिप्पणी का प्रभाव:यह आदेश न केवल संजीवनी क्रेडिट घोटाले की जांच दिशा तय करेगा, बल्कि प्रदेश में चल रहे अन्य को-ऑपरेटिव घोटालों की जांच पर भी प्रभाव डाल सकता है, जहां BUDS Act की धारा 3 से लेकर धारा 10 तक के प्रावधानों के उपयोग को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है


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