हाईकोर्ट ने चर्चित संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी घोटाले में जांच एजेंसियों की कार्यशैली पर कड़ी नाराजगी जताई है। न्यायमूर्ति फरजंद अली की एकल पीठ ने सरकार को अंतिम अवसर देते हुए निर्देश दिए हैं कि वह स्पष्ट करे कि कितने मामलों में 'अनियमित जमा योजना प्रतिबंध अधिनियम, 2019' (BUDS Act) के तहत कार्रवाई होगी और कितने मामलों में केवल भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत मुकदमा चलाया जाएगा।
देवी सिंह समेत अन्य आरोपियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता धीरेंद्र सिंह दासपा और अन्य ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें दलील दी गई कि एक ही मामले में दो अलग-अलग कानून (BUDS Act और IPC) के तहत कार्रवाई नहीं की जा सकती।
कोर्ट की टिप्पणी का प्रभाव:यह आदेश न केवल संजीवनी क्रेडिट घोटाले की जांच दिशा तय करेगा, बल्कि प्रदेश में चल रहे अन्य को-ऑपरेटिव घोटालों की जांच पर भी प्रभाव डाल सकता है, जहां BUDS Act की धारा 3 से लेकर धारा 10 तक के प्रावधानों के उपयोग को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है।