विधानसभा के होने वाले 7 उपचुनाव में भाजपा ने अपने 'जिताऊ उम्मीदवार' फॉर्मूले पर जोर दिया है, जिसमें परिवारवाद और हारे हुए प्रत्याशियों को फिर से मौका देने की संभावना जताई जा रही है। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने संकेत दिए कि भाजपा खास परिस्थितियों में अपने नियमों को दरकिनार करने को तैयार है, जिससे परिवारवाद का सवाल खड़ा हुआ है।
राठौड़ ने कहा कि पिछली परिस्थितियों में हारे हुए प्रत्याशियों को दोबारा मौका देना अब सही हो सकता है, क्योंकि तब कांग्रेस ने भ्रम फैलाया था। उन्होंने परिवारवाद के मुद्दे पर सीधा जवाब न देते हुए कांग्रेस की आलोचना की, जहां प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी, और राहुल गांधी का उदाहरण दिया।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने संकेत देते हुए कहा कि भाजपा जीत को सुनिश्चित करने के लिए अगर जरूरत पड़ी तो शंकरलाल शर्मा (दौसा सीट): 2013 में विधायक रहे शंकरलाल शर्मा 2018 और 2023 में हार गए थे, लेकिन मौजूदा ब्राह्मण सीएम के चलते उन्हें फिर से टिकट मिल सकता है।
सुखवंत सिंह (रामगढ़, अलवर): पार्टी लगातार दो चुनाव हार चुके सुखवंत सिंह को मौका दे सकती है। पिछले चुनाव में उन्होंने आजाद समाज पार्टी से दूसरा स्थान हासिल किया था।
सुशील कटारा (चौरासी): लगातार दो चुनाव हारने के बावजूद सुशील कटारा पर फिर से दांव खेलने की संभावना है।
अविनाश मीणा (सलूंबर): दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा के बेटे अविनाश मीणा को पार्टी परिवार से ही टिकट दे सकती है।
जगमोहन मीणा (दौसा): मंत्री किरोड़ीलाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं, जिससे पार्टी का एक परिवार से एक टिकट का नियम टूट सकता है।
धनंजय सिंह (खींवसर): मंत्री गजेन्द्र सिंह खींवसर के बेटे धनंजय सिंह भी टिकट की दौड़ में हैं, जिससे परिवारवाद का मुद्दा फिर से सामने आता है।
इससे यह साफ है कि भाजपा जीत सुनिश्चित करने के लिए अपने मौजूदा नियमों को भी बदलने के लिए तैयार है। अब देखना है कि पार्टी परिवारवाद और पुराने प्रत्याशियों को लेकर क्या रणनीति अपनाती है।