Monday, 09 June 2025

राजस्थान में 152 अधिकारियों के खिलाफ 6 साल से लंबित हैं अभियोजन की मंजूरी, 22 IAS और 52 RAS अधिकारी शामिल


राजस्थान में 152 अधिकारियों के खिलाफ 6 साल से लंबित हैं अभियोजन की मंजूरी, 22 IAS और 52 RAS अधिकारी शामिल

राजस्थान में भ्रष्टाचार और अन्य आरोपों की जांच में बड़ी अड़चन उस समय सामने आई जब मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा द्वारा हाल ही में अभियोजन और पूछताछ की अनुमति से जुड़े मामलों की समीक्षा की गई। इस समीक्षा में पता चला कि पिछले छह वर्षों से अधिक समय से 152 अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की फाइलें विभिन्न सरकारी एजेंसियों में अटकी पड़ी हैं, जिन्हें पूछताछ या अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिल पा रही है।

इन मामलों में 22 भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और 52 राजस्थान प्रशासनिक सेवा (RAS) के अधिकारी शामिल हैं। नियमों के अनुसार, इन वरिष्ठ अधिकारियों से पूछताछ की अनुमति कार्मिक विभाग की ओर से दी जाती है, लेकिन कई विभाग इस विषय में गंभीरता नहीं दिखा रहे। जांच एजेंसियों द्वारा मांगी गई स्वीकृतियां कार्मिक विभाग और अन्य 16 विभागों में लम्बित हैं, जिनमें नगरीय विकास, राजस्व, पंचायती राज, सहकारिता, वित्त, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, परिवहन, ग्रामीण विकास जैसे प्रमुख विभाग भी शामिल हैं।

सूत्रों के अनुसार, कई अधिकारी ट्रैप केस, पद के दुरुपयोग, आय से अधिक संपत्ति, मनी लॉंड्रिंग और रिश्वत के मामलों में संदेह के घेरे में हैं। जांच एजेंसियों में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB), प्रवर्तन निदेशालय (ED) और राज्य पुलिस प्रमुख भूमिका निभा रही हैं, लेकिन अनुमति के अभाव में पूछताछ आगे नहीं बढ़ पा रही है।

सीएम शर्मा की अध्यक्षता में हुई हालिया समीक्षा बैठक में बताया गया कि जनवरी से अप्रैल 2025 के बीच राज्य सरकार ने 47 मामलों में पूछताछ और अभियोजन की मंजूरी दी, जबकि इससे पहले की तिमाही में केवल 4 मामलों में ही अनुमति दी गई थी। हालांकि, इनमें किसी भी IAS अधिकारी का नाम शामिल नहीं है, जो कि चिंता का विषय बना हुआ है।

अभी भी सरकार के पास 107 ऐसे मामलों की फाइलें लंबित हैं, जिनमें 22 IAS, 2 IFS, 52 RAS, 1 RPS, 3 RACS और अन्य 27 अधिकारी शामिल हैं। इनमें से 8 IAS अधिकारियों के मामले फिलहाल कार्मिक विभाग में परीक्षणाधीन हैं, जबकि 14 मामलों में संबंधित विभागों और ACB से रिपोर्ट मांगी गई है।

इस देरी का सीधा असर जांच की प्रगति पर पड़ रहा है और कई बार आरोपी अधिकारी जांच पूरी होने से पहले ही सेवानिवृत्त हो जाते हैं, जिससे भ्रष्टाचार पर कार्रवाई अधूरी रह जाती है। सरकार के सामने अब यह एक बड़ा प्रशासनिक और राजनीतिक सवाल बनकर उभरा है कि कब और कैसे उच्च अधिकारियों के खिलाफ समयबद्ध पूछताछ सुनिश्चित की जाए।

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