हाईकोर्ट ने दौसा जिले की लोटवाड़ा ग्राम पंचायत में चारागाह भूमि पर अतिक्रमण के मामले में जिला कलक्टर को शपथ पत्र के माध्यम से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई का ब्यौरा पेश करने के निर्देश दिए हैं। मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस उमाशंकर व्यास की खंडपीठ ने यह आदेश जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।
ग्राम पंचायत पर अतिक्रमियों को संरक्षण देने का आरोप: याचिकाकर्ता कैलाश चंद की ओर से अधिवक्ता प्रेमचंद बैरवा ने दलील दी कि लोटवाड़ा ग्राम पंचायत में चारागाह भूमि पर बनी अवैध दुकानों को हटाने के आदेश प्रशासन ने 2021 में जारी किए थे। लेकिन अब तक इन आदेशों पर अमल नहीं हुआ। अधिवक्ता ने बताया कि पंचायत की ओर से अतिक्रमणकारियों को संरक्षण दिया जा रहा है, जो कि पंचायत के दायित्व के विपरीत है।
तीन साल से कार्रवाई लंबित: चारागाह भूमि पर अवैध रूप से लगभग 5 बीघा जमीन पर दुकानें बना ली गई हैं। प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने के लिए केवल नोटिस जारी किए, लेकिन पुलिस बल की कमी का बहाना बनाकर कार्रवाई टाल दी गई।
कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन: याचिकाकर्ता ने बताया कि राजस्थान काश्तकारी अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार, चारागाह भूमि पर किसी भी प्रकार का अतिक्रमण अवैध है। चारागाह भूमि का उपयोग केवल चारागाह के लिए ही किया जा सकता है, अन्य प्रयोजनों के लिए नहीं।
हाईकोर्ट के निर्देश: पिछली सुनवाई में तहसीलदार बैजूपाड़ा से रिपोर्ट मांगी गई थी, लेकिन अब तक रिपोर्ट नहीं पेश की गई। हाईकोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए कहा कि यदि 10 जनवरी तक रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई, तो जिला कलेक्टर को अदालत में पेश होना होगा।
न्यायालय की टिप्पणी: हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि चारागाह भूमि पर अतिक्रमण न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि सार्वजनिक संपत्ति का हनन भी है। प्रशासन को अपनी जिम्मेदारी निभाने में तत्परता दिखानी होगी।
अगली सुनवाई:10 जनवरी को मामले की अगली सुनवाई निर्धारित की गई है। इसमें प्रशासन को अपनी रिपोर्ट और अतिक्रमण हटाने के लिए उठाए गए कदमों का ब्यौरा प्रस्तुत करना होगा।
यह मामला चारागाह भूमि के संरक्षण और ग्रामीण क्षेत्रों में कानून के पालन की आवश्यकता को उजागर करता है। प्रशासन और पंचायतों की निष्क्रियता के कारण सार्वजनिक भूमि का अवैध उपयोग एक गंभीर समस्या बन गई है, जिसे तत्काल सुलझाने की आवश्यकता है।