उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने विदेश में पढ़ाई के प्रति युवाओं के बढ़ते आकर्षण को एक नई बीमारी करार दिया है। उन्होंने शनिवार को सीकर में सोभासरिया ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन के रजत जयंती समारोह में बतौर मुख्य अतिथि कहा कि आजकल युवा विदेश जाकर पढ़ाई करने को स्वर्ग मानने लगे हैं, बिना यह समझे कि वे किस देश और संस्थान में जा रहे हैं। इस अंधाधुंध प्रवृत्ति से केवल ब्रेन ड्रेन ही नहीं हो रहा, बल्कि लगभग छह बिलियन अमेरिकी डॉलर की करंसी भी देश से बाहर जा रही है, जो अगर भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर खर्च होती तो बहुत सुधार हो सकता था।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने बताया कि 2024 में ही 13.50 लाख भारतीय विद्यार्थी विदेश पढ़ाई के लिए गए हैं, जिससे देश की शिक्षा, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पर गहरा असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि एक दशक पहले भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की पांच सबसे कमजोर अर्थव्यवस्थाओं में थी, लेकिन अब भारत अगले दो वर्षों में विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड और वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाओं ने भी भारत की पारदर्शिता और योग्यता की तारीफ की है।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने प्राचीन गुरुकुल शिक्षण प्रणाली का जिक्र करते हुए कहा कि शिक्षा व्यापारिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि समाज को कुछ लौटाने के भाव से होनी चाहिए। कार्यक्रम में डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा ने नई शिक्षा नीति के साथ राजस्थान के कदमताल पर प्रकाश डाला, जबकि यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा और राज्यसभा सदस्य घनश्याम तिवाड़ी ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने उद्योगों को अपने सीएसआर (कॉर्पोरेट सोशल रेस्पॉन्सिबिलिटी) फंड से शिक्षण संस्थाओं को समर्थन देने की अपील की। उन्होंने कहा कि उद्योगों द्वारा शिक्षा में किया गया निवेश नवाचार और शोध को बढ़ावा देगा, जो अंततः देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करेगा।
कार्यक्रम में डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा ने कहा कि नई शिक्षा नीति के साथ राजस्थान भी लगातार कदमताल कर रहा है। कार्यक्रम को यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा व राज्यसभा सदस्य घनश्याम तिवाड़ी आदि ने भी संबोधित किया।